हमारी धरती पर जल एक लगातार चक्र में चलता है। सूरज की गर्मी से नदियों, तालाबों, झीलों से जल भाप बनकर उड़ जाता है और वातावरण में पहुंच जाता है। जब इस तरह के बहुत सारे वाष्प कण इकट्ठे हो जाते हैं तो वे बादल का रूप ले लेते हैं। जब ये बादल आपस में टकराते हैं तो बारिश होती है। लेकिन जब ये बादल वातावरण में अधिक ऊपर चले जाते हैं तो वहां का तापमान बहुत कम हो जाता है और वातावरण बहुत ठंडा हो जाता है।
बर्फबारी पहाड़ी इलाकों में
बर्फ उन स्थानों पर अधिक गिरती है जो इलाके या तो समुद्र से काफी ऊपर होते हैं या फिर ऊंचाई पर होते हैं। वातावरण में बर्फ काफी अधिक बनती है, जिसका एक छोटा हिस्सा ही नीचे पहाड़ों पर गिरता है। बाकी हिस्सा बारिश के रूप में नीचे आता है। वातावरण में मौजूद ओजोन की गर्म परतों के बीच से जब बर्फ के कण गुजरते हैं तो यह बर्फ पिघल जाती है और बारिश के पानी में बदल जाती है, जबकि ऊंचे पहाड़ों में तापमान पहले से ही शून्य डिग्री से काफी कम होता है, इसलिए वहां पर बर्फबारी होती है।
पहाड़ी इलाकों में ज्यादा ठंड
पहाड़ों की जमीन समतल यानी बराबर नहीं होती है। वहां की जमीन टेढ़ी-मेढ़ी और उबड़-खाबड़ होने के कारण अधिकतर जगह सूर्य की किरणें सीधी न पड़कर आड़ी-तिरछी पड़ती हैं। इस वजह से मैदानी इलाकों की बजाय पहाड़ी जमीन को बहुत कम मात्र में ऊष्मा मिलती है। सूर्य के छिप जाने के बाद धरती विकिरण के चलते ठंडी होने लगती है। पहाड़ों का पूरा क्षेत्रफल मैदानों की अपेक्षा बहुत अधिक होता है, इसलिए पहाड़ जल्द ही ठंडे हो जाते हैं। पहाड़ों पर रात और भी ठंडी होती है, क्योंकि जहां ज्यादा ऊंचाई होगी, वहां उतनी ही अधिक ठंड भी होगी। पहाड़ों की ऊंचाई पर हवा का घनत्व निर्भर करता है। जितनी अधिक ऊंचाई होगी, हवा का घनत्व कम होगा। यही कारण है कि पहाड़ गर्मी में भी ठंडे होते हैं।
पहाड़ों पर गिरी बर्फ की विशेषता
बर्फबारी में धरती पर अकसर बर्फ की सफेद चादर-सी बिछ जाती है। गिरती हुई यह बर्फ हमेशा नर्म नहीं होती है। यह बर्फ गिरते हुए एक जगह इकट्ठी न गिरकर हवा के साथ इधर-उधर फैल जाती है, इसलिए यह कहीं बहुत ज्यादा और कहीं बहुत कम गिरती है। कभी यह छोटे-छोटे पत्थर के रूप में, तो कभी बारिश के साथ गिरने वाले सख्त बर्फ यानी ओलों के रूप में भी गिरती है। बर्फ चाहे जिस रूप में भी गिरे, जहां यह गिरती हैं वहां का तापमान काफी गिर जाता है। आसपास के इलाके भी सर्द हवाओं की चपेट में आ जाते हैं।हवा इन बर्फ कणों का वजन सहन नहीं कर पाती और ये कण बादल से नीचे की ओर गिरने लगते हैं। जब वो गिरते हैं तो एक-दूसरे से टकरा कर जुड़ने लगते हैं। इस तरह इनका आकार बड़ा होने लगता है। जब ये कण हमारी पृथ्वी पर गिरते हैं तो हम उसे बर्फबारी कहते हैं।
पहाड़ों पर गिरी यह बर्फ गर्मियों में सूरज की तपिश से पिघलकर नदियों में पानी की आपूर्ति करती है, जिसे खेती-बाड़ी, बिजली बनाने और अन्य कामों के लिए उपयोग किया जाता है।