हम एक बहुत ही सुंदर ग्रह पर रहते हैं, जहां कई पौधे और पशु प्रजातियां सह-अस्तित्व में हैं, जो एक ऐसी दुनिया में जीवित रहने और अनुकूलन करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं जहां उन्हें हर दिन कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन, अगर दिन के दौरान हम कई प्रकार के रंग और जीवन के रूप देख सकते हैं, तो रात में यह शो जारी रहता है, केवल इस समय तारों से भरा आसमान बहुत कम बार हम इसे महसूस करते हैं, व्यर्थ नहीं, यह भूलना आसान है कि वहाँ अन्य दुनिया हैं जहां, शायद, जीवन है।
हम से दूर हैं तारे
रात के समय आकाश को देखने पर हमें यही प्रतीत होता हैं कि सभी तारे किसी विशाल गोले पर बिखरे हुए हैं और साथ ही साथ हमें यह भी लगता है कि सभी तारे हमसे एकसमान दूरी पर स्थित हैं। इस गोले को प्राचीन भारतीय खगोल-विज्ञानियों तथा यूनानी ज्योतिषियों ने ‘नक्षत्र-लोक’ नाम दिया था। इसी अनुमान के आधार पर अमीर खुसरो ने इस पहेली की भी रचना की थी -‘एक थाल मोती भरा, सबके सिर पर औंधा पड़ा!’ इस पहेली को आप और हम कई बार हल कर चुकें हैं। आज हम जानते हैं कि उनका यह अनुमान सही नहीं था, क्योंकि न तो सभी तारे एकसमान दूरी पर स्थित हैं और न ही कोई ऐसा गोल है जिस पर ये टिके हुए हैं।
तारों के रंग एवं तापमान
दूरबीन से देखने पर तारे अलग-अलग रंग के दिखाई देते हैं। जब किसी लोहे की छड़ी को हम आग में गर्म करते हैं तो ताप और रंग के बीच का संबंध हमें स्पष्ट दिखाई देने लगता हैं। जब छड़ी गर्म होती हैं तो लाल रंग की हो जाती है। इससे भी अधिक गर्म करने पर पीले रंग की हो जाती है, और भी गर्म करने पर छड़ी सफेद रंग की हो जाती है। बहुत अधिक तापमान होने के कारण सफेद रंग, नीले रंग में परिवर्तित हो जाती है। ठीक उसी प्रकार अधिक गर्म तारे नीले दिखाई देते हैं, उनकी अपेक्षा पीले तारे उनसे कम गर्म तथा लाल तारे सबसे कम गर्म होते हैं। हमारा सूर्य एक पीले रंग का तारा है। इसलिए यह न तो बहुत अधिक गर्म है और न ही बहुत ठंडा। यह एक सामान्य तारा है।
तारों का चमकीलापन
रात के समय तारों को नंगी आँखों से देखने पर हमें यह पता होने लगता है कि कुछ तारे अधिक चमकीले हैं तथा कुछ कम। चमक (कांति) के आधार पर तारों को विभिन्न कांतिमानों में वर्गीकृत किया गया है। जैसाकि हम जानते हैं कि तारे हमसे बहुत दूर हैं और दूरी अधिक होने के कारण कम चमकीले तारे हमें दिखाई नही देते हैं। हम नंगी आँखों से केवल छठे कांतिमान के तारों को ही देख सकते हैं। मजेदार बात यह है कि धरती से दिखाई देने वाले आकाश में छठे कांतिमान के लगभग साढ़े पांच हजार से अधिक तारे नही हैं।
आकाशगंगा में अनेक ऐसे भी तारे हैं जो सूर्य से छोटे हैं और-तो-और अनेक तारे पृथ्वी तथा बुध ग्रह से भी छोटे हैं। ऐसे तारों को ‘श्वेत वामन तारे’ अथवा ‘बौने तारे’ कहते हैं। श्वेत वामन तारे भले ही सूर्य से छोटे होते हैं, परन्तु इनका द्रव्यमान लगभग बराबर ही होता हैं। महादानव तारों के द्रव्य का घनत्व पानी के घनत्व की अपेक्षा लगभग एक लाख गुना कम होता है।